मझे खामोश राहों में तेरा साथ चहिए,
तन्हा है मेरा हाथ तेरा हाथ चाहिए,
मुझे जीने के लिए तेरी ही जात चाहिए|

प्रेम के सप्ताह को अगर बारीकी से देखें तो हर दिन जीवन जीने का सलीका सीखा देता है|

वर्ल्ड प्रोपोज़ डे के दिन बहुतों ने अपनी दिल की बात किसी के सामने रखी होगी| किसी को हां मिली हो और बहुतो की तो बात भी नहीं सुनी गई होगी| आखिर ऐसी क्या वजहें हैं जिनकी वजह से प्रस्ताव स्वीकार और नकार दिए जाते हैं|

अपनी बात कहने का सलीका जिसने यह कला सिख ली वह जिंदगी में आगे बढ़ गया और जो अपनी बात सलीके से नहीं कह पाया, वह पिछे रह गया है|

इसी सलीके को सिखने में एक उम्र गुजर जाती है| यह सलीका न सिर्फ प्रेम प्रस्ताव में बल्कि नौकरी के इंटरव्यू में और खासकर प्रेजेंटेशन देते समय और मंच पर बोलते समय|

प्रेजेंटेशन स्किल पर्सनालिटी डेवलपमेंट का सबसे अहम हिस्सा है| इसे सीखने के लिए शहर में कई इंस्टीट्यूट्स और ग्रूमिंग एकेडमी चल रही है| ऐसे ही एक इंस्टिट्यूट की ट्रेनर वंदना श्रीवास्तव ने खुद प्रेजेंटेशन के कुछ तकनिकी पहलुओं के बारे में बताया जिन्हें अपनाने के बाद किसी की भी कोई बात ठुकराई नहीं जाएगी बाल्कि सुनी जाएगी|

रिलेशनशिप को समझे: सबसे पहले अपने ऑडियंस या उस पर्सन से अपने रिलेशन को समझे| आप किससे बात करने जा रहे हैं| मसलन आपके बॉस, इंटरव्यूअर, टीचर, माता-पिता आदि| सबसे पहले अपने ऑडियंस से अपने रिलेशनशिप को समझें|

मौका क्या है: आपको जिससे बात करनी हैं, वह मौका क्या है? मतलब किसी से प्रणय निवेदन करना है, किसी इंटरव्यू में जाना है, कोई प्रेजेंटेशन देनी है आदि| उसी मौके के हिसाब से कपड़े होने चाहिए| कपड़ों और ड्रेसिंग सेंस का सामने वाले पर प्रभाव पड़ता है|

बॉडी लैंग्वेज, जैस्चर: बॉडी लैंग्वेज, आई कॉन्टेक्ट, हाव-भाव बहुत असर डालते हैं| इनका ध्यान रखना चाहिए| मतलब हकलाने और हड़बड़ाने से आपका इम्प्रेशन ख़राब हो सकता है| इसका ध्यान रखें| कॉफिडेंस के साथ अपनी बात कहें, आई कांटेक्ट बनाकर रखें|

डिस्टेंस मेन्टेन करें: आप जिससे बात रहे हैं, उससे प्रॉपर दूरी बनाकर अपनी बात कहें| ऐसा न करने से आप सामने वाले के स्पेस और औरा को प्रभावित करते हैं| जिससे सामने वाले पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं|

सिचुएशन एज़्यूम: पहले से सिचुएशन एज़्यूम करिये| वह परिस्थिति को अपने दिमाग में सोचे और उसी हिसाब से अपनी बातें तैयार कर लें| इससे मौके पर दिक्क़त नहीं आएगी| दिमाग में पहले से परिस्थितियों का ताना-बाना बुना होने से परिणाम सकारात्मक ही आते हैं|

सुनना जरुरी है: अपनी बात धाराप्रवाह तरीके से ना कहें| सामने वाले को भी सुने| उसे भी बोलने का मौका दें|

मिस्ट्री भी जरूरी: खुद को पूरा जाहिर न कर दें| बातों में थोड़ी मिस्ट्री, थोड़ा ह्यूमर भी घोलें| यह ध्यान रखें की सामने वाला किस स्वभाव का हैं|

 

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